आज का सफर | पुणे से लखनऊ | एक अद्वितीय रोमांच

सोलो बाइक ट्रिप हर बाइक प्रेमी का सपना होता है, और मेरे लिए भी यह एक लंबे समय से प्रतीक्षित अनुभव है। आखिरकार, वह दिन आ ही गया जब मुझे अपने सपनों की यात्रा पर निकलना है। यह सफर पुणे से लखनऊ तक का है, जिसमें लगभग 1500 किलोमीटर की दूरी तीन दिनों में तय होनी है। पहला दिन पुणे से इंदौर, दूसरा दिन इंदौर में घूमने के लिए, और फिर इंदौर से लखनऊ तक का सफर।

पहला दिन: पुणे से इंदौर

रात को सोने से पहले, मैं इस विचार में खो जाता हूं कि सुबह होते ही पुणे से लखनऊ की रोमांचक यात्रा शुरू हो जाएगी। सुबह 8 बजे मेरी नींद खुली। बाहर बारिश हो रही है, और मैंने अपनी बाइक पर बैग्स सेटअप कर दिए हैं। गूगल मैप्स में गंतव्य डाला और बाइक स्टार्ट कर सफर की शुरुआत की। पहला काम है पेट्रोल भरवाना, जो पास के पेट्रोल पंप पर जाकर पूरा करता हूँ। रास्ते में लोग मुझे उसी तरह देख रहे हैं जैसे मैं दूसरे राइडर्स को देखा करता हूं—अभिवादन करते हुए, हाथ हिलाते हुए। यह सब देखकर दिल में एक अजीब सी खुशी हो रही है।

थोड़ी देर बाद नाश्ते के लिए रुकना है। करीब 50 किलोमीटर बाद मैं एक ढाबे पर बाइक रोकता हूं और नाश्ते के लिए बैठ जाता हूं। ढाबा बिल्कुल सड़क के बगल में है। मैंने अपनी बाइक लगाई और ढाबे के अंदर चला जाता हूं। वहां बैठे लोग मुझे देख रहे हैं, शायद मेरे बाइक पर लगे बैग्स और राइडर की पोशाक की वजह से।। मैंने कुछ लोकल डिश मंगाई और पेट भरकर नाश्ता किया ताकि जल्दी भूख न लगे और मैं लगातार कुछ किलोमीटर तक चल सकूं। नाश्ता करके मैं निकल जाता हूं और अब सीधा लंच के लिए रुकने की सोचकर आगे बढ़ता हूं। मौसम बहुत सुहावना है, मानसून का समय जो है।

थोड़ी दूर आगे जाता हूं कि काले बादल आसमान में छा जाते हैं और देखते ही देखते बारिश शुरू हो जाती है। मैं एक पेड़ की छांव में रुक जाता हूं। हालांकि मेरे पास बारिश से बचने के कपडे है, लेकिन मैं पहनना नहीं चाहता क्योंकि मुझे लगता है कि बारिश रुक जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होता और मुझे बारिश से बचने वाले कपड़े पहनने ही पड़ते हैं। थोड़ी दूर आगे जाने के बाद बारिश रुक जाती है और मैंने बारिश के कपडे उतारकर बैग में रख दिया क्योंकि रेनसूट में गर्मी लग रही है।

मैं अब बाइक स्टार्ट करने ही वाला होता हूं कि अपने पिता के साथ जाते हुए एक बच्चे ने मुझे देखा। उसके पिताजी बाइक रोक देते हैं और बच्चा मेरे पास आता है और पूछता है, “भैया, आप राइडर हो?” फिर वह पूछता है, “आप कहां से आए हो और कहां जा रहे हो?” मैंने उसे बताया कि मैं पुणे से लखनऊ जा रहा हूँ और फिर उसने मेरे हेलमेट पर लगे कैमरे को देख कर कहा, “आप यूट्यूबर भी हो?” मैं मुस्कुराता हूं और सच बताऊं तो पहली बार मुझे थोड़ा सेलेब्रिटी जैसा एहसास हो रहा है। अंत में मैंने उस बच्चे से हाथ मिलाया तो उसकी खुशी देखने लायक है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे उसने किसी बड़े सेलेब्रिटी से हाथ मिलाया हो। फिर मैंने बाइक स्टार्ट की और आगे बढ़ जाता हूं।

अब मुझे हाइवे का इंतजार है क्योंकि बारिश की वजह से बाइक बहुत धीरे-धीरे चलानी पड़ रही है और मैं रात में राइड करना पसंद नहीं करता हूं। इसलिए हाइवे मिलने के बाद जल्दी दूरी तय करना चाहता हूं। लगभग 50 किलोमीटर बाद हाइवे मिल जाता है। अब मैं रफ्तार से आगे बढ़ रहा हूं कि फिर से बारिश शुरू हो जाती है और इस बार मैं हाइवे पर हूं, कोई पेड़ नहीं, कोई छांव नहीं। तभी मैंने सड़क पर खड़ा एक ट्रक देखा और उस ट्रक की छांव में मैंने फिर से रेनसूट पहना और तय किया कि अब रेनसूट पहनकर ही रहूंगा क्योंकि बार-बार रुकने और रेनसूट पहनने में भी समय बर्बाद हो रहा है।

थोड़ी देर बाद बारिश रुक जाती है और मैं सुहावने मौसम में प्रकृति के नजारे देखते हुए अपने सफर में आगे बढ़ता हूं। लगभग 100 किलोमीटर बाद हाइवे छूट जाता है और गूगल मैप्स का अनुसरण करते हुए मैं एक 10-15 फीट चौड़ी सड़क पर पहुंच जाता हूं जिसमें बीच-बीच में बहुत बड़े-बड़े गड्ढे हैं। मैंने सोचा कि क्यों मैंने हाइवे छोड़ा, क्योंकि उस रास्ते पर मुझे कोई भी आता-जाता नहीं दिख रहा है। कुछ दूर चलने के बाद मुझे एक टेंपो दिखता है जो शायद सब्जी लेकर जा रहा है, तब जाकर मेरे जान में जान आती है कि शायद अब आगे हाइवे मिलेगा। काफी दूर चलते-चलते आखिरकार हाइवे मिल ही जाता है।

अब शाम के 4 बज रहे हैं और इंदौर अभी भी 300 किलोमीटर दूर है। मुझे भूख भी लग रही है पर मैं खाने के लिए रुकता हूं तो और देर हो जाएगी और यह सोचकर मैं आगे चलता रहता हूं। तभी मुझे ख्याल आता है कि कहीं रुककर मुझे ऑनलाइन होटल बुक कर लेना चाहिए, तो मैंने एक पेट्रोल पंप पर रुका, वहां पर पेट्रोल टैंक फुल कराया और होटल भी बुक कर लिया। लेकिन एक छोटी सी समस्या आ जाती है, इस पेट्रोल पंप पर ऑनलाइन पेमेंट नहीं ले रहे हैं, तो मुझे रेनसूट उतारकर वॉलेट निकालनी पड़ती है और कैश देना पड़ता है। अब सीधे इंदौर में रुकूंगा यह सोचकर मैं आगे बढ़ता हूं और करीब रात के 9 बजे मैं इंदौर पहुंच जाता हूं।

अब मैं अपने होटल से 1 किलोमीटर दूर हूं तो सोचता हूं खाना खाकर चलता हूं ताकि होटल जाकर सीधे सो सकूं। यह सोचकर मैं एक रेस्टोरेंट के अंदर जाता हूं। वहां का एक स्टाफ सदस्य मुझे देख रहा है, शायद कुछ कहना चाहता है। मैंने उसे मेनू देने के लिए कहा। उसने मेनू दिया और कहा, “सर, आपके चेहरे पर कुछ लगा है।” मैंने वॉशरूम जाकर देखा तो मेरे चेहरे पर धुआं लगा हुआ था, शायद इतनी दूर ड्राइव करके आने की वजह से धूल और वाहनों का धुआं था। मैंने अपना चेहरा धोया और स्टाफ सदस्य को धन्यवाद कहा। मैंने खाने में सब्जी और रोटी ऑर्डर की। मैं खाने का इंतजार कर रहा हूं तभी मुझे होटल से कॉल आ जाती है। मैंने होटल वाले को बताया कि मैं पास में ही हूं और थोड़ी देर में होटल पहुंचने वाला हूं। मैंने स्वादिष्ट खाना खाया, शायद भूख बहुत लगी थी इस वजह से खाना बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। खाने के बाद मैं सीधे होटल पहुंचता हूं और अपने कमरे में जाकर अगले दिन के लिए 7:30 बजे की अलार्म लगाता हूं और सो जाता हूं।

दूसरा दिन: इंदौर और धार्मिक स्थल

अगले दिन मैं 7:30 बजे उठता हूं और ताजगी महसूस करते हुए 9 बजे तक तैयार हो जाता हूं। आज पूरे दिन मुझे इंदौर के आसपास घूमना है। सबसे पहले मैं महाकाल के दर्शन करूंगा और फिर ओंकारेश्वर जाऊंगा। जहां मैंने होटल लिया है, वहां से उज्जैन (महाकालेश्वर मंदिर) 55 किमी और ओंकारेश्वर मंदिर 80 किमी दूर है। मैं सोचता हूं कि पहले उज्जैन जाऊंगा और महाकालेश्वर के दर्शन करूंगा, यह सोचकर मैं होटल से निकल जाता हूं।

करीब 10 बजे मैं महाकालेश्वर मंदिर परिसर में पहुंचता हूं। वहां पर मैंने बाइक लगाई और मंदिर की ओर बढ़ता हूं। तभी कुछ लोग मुझे अपनी-अपनी दुकान पर प्रसाद लेने के लिए बुलाते हैं। मैं एक लड़के की दुकान पर रुकता हूं, वहां पर अपने जूते उतारता हूं और प्रसाद लेने लगता हूं। प्रसाद लेते-लेते मैंने पूछा कि मंदिर में भीड़ है या नहीं। लड़के ने जवाब दिया कि आज भीड़ कम है, तो जल्दी दर्शन हो जाएंगे।

मन ही मन सोचता हूं कि अच्छा है, यहां जल्दी दर्शन हो जाएंगे, फिर ओंकारेश्वर मंदिर जाकर भी जल्दी से दर्शन करके थोड़ी देर घूम लूंगा और होटल में जल्दी पहुंचकर आराम कर लूंगा, क्योंकि कल फिर से मुझे लगभग 800 किमी बाइक चलानी है। यह सोचकर मैं मंदिर के अंदर जाता हूं लेकिन अंदर जाते ही पता लगता है कि यहां VIP की लाइन अलग से है, जिसके लिए 250 रुपये देने पड़ते हैं। मुझे आज के दिन दोनों ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने हैं, यह सोचकर मैंने VIP टिकट लेने की सोची, लेकिन फिर से कैश वाली समस्या आ जाती है। मेरे पास कैश नहीं है और मंदिर में UPI से पैसे नहीं ले रहे हैं। मैंने VIP टिकट के लिए लगी लाइन में एक लड़के से बात की, जो अपने लिए टिकट लेने के लिए खड़ा है। मैंने उससे 250 रुपये कैश देने की बात की और उसने मान लिया। मैंने 250 रुपये कैश लेकर उस लड़के को 250 रुपये UPI कर दिए और टिकट लेकर दर्शन करने के लिए आगे बढ़ गया। लगभग 30 मिनट में मुझे महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो जाते हैं। मैं बहुत खुश हूं और सोच रहा हूं कि ओंकारेश्वर में भी जाकर VIP दर्शन कर लूंगा, फिर मेरे पास बहुत समय बचेगा और मैं इंदौर घूमकर शाम को जल्दी से होटल पहुंच जाऊंगा।

करीब 11 बजे मैं उज्जैन से ओंकारेश्वर के लिए निकल जाता हूं। उज्जैन से ओंकारेश्वर की दूरी करीब 150 किमी है। मैंने सोचा एक बार में पहुंच जाऊंगा लेकिन बीच में 25 किमी लगभग जंगल का क्षेत्र पड़ता है और वहां बहुत ज्यादा ट्रैफिक मिल जाता है। बाद में पता चलता है कि कोई बस खराब हो गई है और रोड संकरी होने की वजह से बाकी की गाड़ियां निकल नहीं पा रही हैं। मैं जैसे-तैसे अपनी बाइक निकाल पाता हूं और जल्दी से ओंकारेश्वर पहुंच जाता हूं। मुझे पता है कि ओंकारेश्वर जाकर हमें ममलेश्वर के भी दर्शन करने पड़ते हैं।

ओंकारेश्वर और मांलेश्वर मंदिर आमने सामने हैं बस बीच में एक नदी है। भक्तगण नाव से या फिर ब्रिज से एक मंदिर से दूसरे मंदिर आ जा सकते हैं। ओंकारेश्वर में बाइक स्टैंड नहीं मिलता तो मैंने बाइक मांलेश्वर में लगा दी। मैने सोचा जल्दी से VIP टिकट लेकर दर्शन करके निकलता हूं और यह सोचकर मैं ओंकारेश्वर मंदिर की ओर ब्रिज से होकर जाने लगा। वहां जाकर देखा तो पता चलता है कि शनिवार और रविवार को VIP टिकट बंद हैं।

अब यह मेरी सोच है या सच, यह पता नहीं लेकिन अचानक से मुझे एहसास होता है कि पिछले 1-2 घंटे में मैं शायद पैसों को ही सब कुछ समझ रहा था और पैसे के बल पर ही जल्दी दर्शन करने के लिए VIP टिकट ले रहा था, लेकिन ऊपर वाले ने तुरंत मुझे एहसास दिला दिया कि पैसा ही सब कुछ नहीं है। हम वैसे ही रहते हैं जैसे हमें भगवान रखता है। मैं शायद पैसे से जल्दी से भगवान के दर्शन करना चाहता था और इस बात के लिए मैंने मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगी और कतार में लग जाता हूं। कतार बहुत लंबी है और मैं सबसे पीछे हूं।

ओंकारेश्वर मंदिर जाने के लिए हमें पहले बहुत नीचे जाना पड़ता है और शायद इसी वजह से वहां बहुत ज्यादा गर्मी है। कुछ लोगों को मैंने भीड़ और गर्मी के कारण लौटकर जाते हुए भी देखा। पर मुझे आज दर्शन करना ही है, ऐसा मैंने निश्चय किया।

अब शाम के 4 बज रहे हैं और मंदिर के द्वार 5 बजे खुलेंगे, ऐसा कहीं से आवाज आती है। भीड़ में खड़े होने से ज्यादा वहां पर गर्मी की वजह से परेशानी हो रही थी। जैसे-तैसे 5 बजे मंदिर के द्वार खुलते हैं और लोग आगे बढ़ने लगते हैं। अब हमें 3 मंजिल सीढ़ियां चढ़नी हैं, और ऊपर मंदिर है। धीरे-धीरे करके अंततः मैं ज्योतिर्लिंग तक पहुंच ही जाता हूं। मैंने दर्शन किए, भीड़ ज्यादा होने की वजह से हमें रुकने नहीं दिया जा रहा था। इसलिए हमें चलते-चलते ही दर्शन करना पड़ता है।

अब ममलेश्वर जाना है क्योंकि मान्यता के अनुसार अगर आप ओंकारेश्वर के बाद ममलेश्वर के दर्शन नहीं करते हैं तो ओंकारेश्वर के दर्शन अधूरे हैं। मैंने ब्रिज से नदी पार की और ममलेश्वर मंदिर की ओर चल पड़ा। ममलेश्वर में भीड़ नहीं है इसलिए बहुत अच्छे से दर्शन हुए। अब मैं खुश हूं कि दोनों ज्योतिर्लिंगों के दर्शन हो गए लेकिन अब रात हो चुकी है। यही कोई 8 बज रहे हैं।

मैं ममलेश्वर से बाहर निकलता हूं और बाइक पार्किंग ढूंढने लगता हूं क्योंकि वहां पर बहुत सारे द्वार हैं और मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैंने बाइक कहां लगाई है। मैंने एक पार्किंग स्टैंड में पूछा, लेकिन उसने कहा कि उसे नहीं पता। फिर मैंने एक दुकान वाले से पूछा तो उसने एक तरफ जाने का रास्ता बताया, मैं वहां गया तो मुझे मेरी बाइक मिल गई। मैंने अपने मोबाइल में होटल का पता डाला और निकल गया। तभी मुझे एक हाथ दिखाया, वह शायद वहां के पंडित जी का था और वो लिफ्ट मांग रहे हैं, मैंने उन्हें लिफ्ट दे दी और 1 किमी बाद उनका घर आ गया और मैंने उन्हें छोड़ दिया।

अब मेरा प्रमुख डर वह 25 किमी जंगल का रास्ता है, क्योंकि रात हो चुकी है और इस रास्ते पे दूर दूर तक कुछ भी नहीं है। फिर अगर कहीं ट्रैफिक हुआ तो और देर हो जाएगी और फिर कल सुबह निकलना भी तो है। इस डर के साथ मैं आगे बढ़ता हूं लेकिन शुक्र है कि मुझे कोई ट्रैफिक नहीं मिलती है और मैं इंदौर पहुंच जाता हूं। इंदौर पहुंचकर मैंने खाना खाया और होटल पहुंच जाता हूं।

होटल का स्टाफ भी मुझे एक राइडर के रूप में जानने लगता है क्योंकि उन्होंने मेरी बाइक पर लगे बैग्स देखे हैं, उन्हें पता चला कि पुणे से लखनऊ जा रहा हूँ।
कल मैं होटल छोड़ रहा हूं और लखनऊ के लिए निकलने वाला हूं। अब मुझे जल्दी से जल्दी सोना है, यह कहकर मैं रिसेप्शन से अपने कमरे में चला जाता हूं और सो जाता हूं।

तीसरा दिन: इंदौर से लखनऊ

सुबह होती है, मैं उठ जाता हूं और जल्दी से तैयार हो जाता हूं। फिर मैं होटल के रिसेप्शन पर कमरे से बैग्स लाने के लिए कहता हूं। रिसेप्शनिस्ट एक आदमी को मेरे कमरे से बैग लाने के लिए कहता है। मैंने सोचा जब तक बैग्स आ रहे हैं, मैं थोड़ा नाश्ता कर लेता हूं। पता नहीं नाश्ता इतना अच्छा है कि मैंने कुछ ज्यादा ही खा लिया। फिर होटल स्टाफ को धन्यवाद बोलकर निकल जाता हूं। अब लखनऊ 785 किमी दूर है और सुबह के करीब 10 बज रहे हैं। मैं जल्दी से जल्दी दूरी तय करना चाहता हूं।

थोड़ी दूर ही गया था कि फिर से बारिश शुरू हो जाती है, लेकिन मैं इस बार पूरी तैयारी के साथ निकला हूं। मैंने बारिश के कपड़े पहन रखे हैं और किसी भी कारण से रुकना नहीं चाहता हूं। लगभग 20 मिनट तक बहुत तेज बारिश होती है। अब बारिश रुक जाती है और मौसम बहुत अच्छा हो जाता है। जैसे-जैसे मैं उत्तर भारत की तरफ बढ़ रहा हूं, आसमान साफ होता जा रहा है। दरअसल, उत्तर भारत में मॉनसून देर से आता है, इसलिए अभी यहां बारिश के आसार बहुत कम लग रहे हैं। मै इंदौर से गुना पहुंचा और फिर गुना से झांसी की ओर बढ़ता हूं।

तभी मुझे हाइवे के बोर्ड पर पहली बार लखनऊ का नाम दिखता है। यह वह पल है जिसे देखकर मैं बहुत खुश होता हूं। लखनऊ की दूरी अब 354 किमी है। मैंने बाइक रोड के किनारे लगाई और कुछ तस्वीरें लीं। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रहा हूं, मुझे एक अलग सी खुशी मिल रही है। मैंने पेट भरकर नाश्ता कर लिया है, जिसकी वजह से मुझे भूख नहीं लगी और समय बच गया। मुझे झांसी से कानपुर पहुंचते-पहुंचते रात के 7:30 बज जाते हैं। कानपुर लखनऊ का पड़ोसी शहर है जो लगभग 70-80 किमी दूर है।

पुणे से लखनऊ के इस सफर में बढ़ते हुए, पहली बार लखनऊ के RTO का नंबर देखता हूं — UP32। गाड़ी का यह नंबर देख कर मुझे अत्यधिक खुशी होती है और ऐसा लगता है कि अब मैं लखनऊ पहुंच ही गया हूं। थोड़ी दूर चलने के बाद रोड पर मेट्रो का काम चल रहा है, जिससे थोड़ा ट्रैफिक मिल जाता है। फिर भी, जैसे-तैसे मैं 9 बजे तक लखनऊ पहुंच जाता हूं।

यह मेरी पुणे से लखनऊ के सफर में 1500 किमी की सोलो बाइक ट्रिप की कहानी है। इस यात्रा के दौरान मैंने महाराष्ट्र की हरियाली से भरी पहाड़ियाँ, मराठी संस्कृति, दो ज्योतिर्लिंग, इंदौरी स्वाद, बुंदेलखंडी भाषा, बदलते मौसम और अनगिनत अद्भुत अनुभव किए। ये सभी अनुभव आज भी मेरी जिंदगी की खूबसूरत यादों में शामिल हैं। जब भी मैं इस यात्रा को याद करता हूं, तो हमेशा उसी सफर में खो जाता हूं और मेरे सामने में पुणे से लखनऊ का पूरा सफर एक फिल्म की तरह चलने लगता है।

बचपन में मैंने पढ़ा था कि भारत की भौगोलिक स्थिति बहुत विविध है और इस विविधता का एक हिस्सा मैंने इन तीन दिनों में पुणे से लखनऊ जाते समय महसूस किया है। खान-पान से लेकर भाषा के बदलाव तक, मैंने हर पहलू को देखा है। पुणे से लखनऊ की यात्रा अब मेरी जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन चुकी है, और मैं इसे हमेशा अपने साथ संजोकर रखूंगा।

अनुभव:

पुणे से लखनऊ सोलो बाइक ट्रिप ने मुझे जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से रूबरू कराया। पुणे से लखनऊ की इस यात्रा में महाराष्ट्र की हरियाली, मराठी संस्कृति, और इंदौरी स्वाद ने मेरी यात्रा को यादगार बना दिया। पुणे से लखनऊ के रास्ते में मौसम की बदलती परिस्थितियों ने मुझे अनुकूलन करना सिखाया। अकेले सफर करने का अपना एक अलग रोमांच और चुनौती है, लेकिन इससे मुझे आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का अनुभव हुआ। विभिन्न स्थानों पर मिलने वाले लोगों ने मेरे अनुभव को और समृद्ध किया।

सुझाव:

• पुणे से लखनऊ जैसी लंबी दूरी की यात्रा पर निकलने से पहले एक स्पष्ट योजना बनाएं। यात्रा के हर चरण के लिए समय निर्धारण और ठहराव के स्थानों की जानकारी रखें। साथ ही थोड़ा अतिरिक्त समय लेकर चलें ताकि अगर किसी अन्य जगह समय बर्बाद हो जाए तो समय की भरपाई की जा सके।

• यात्रा से पहले मौसम की जानकारी और रूट का अध्ययन करें। मौसम के अनुसार कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं साथ रखें।

• बाइक की पूरी मेंटेनेंस हो, तभी बाइक ट्रिप शुरू करें, खासकर जब सफर पुणे से लखनऊ जैसा हो, जिसमें जंगल का रास्ता शामिल हो।

• सोलो बाइक ट्रिप पर जाते समय सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें। हेलमेट, दस्ताने और अन्य सुरक्षा गियर का उपयोग करें। और बाइक पर बैग्स का बैलेंस जरूर सही रखें और समय-समय पर बैग्स की जांच करते रहें।

• रास्ते में हाइड्रेटेड रहें और हल्का, पौष्टिक भोजन साथ रखें। पुणे से लखनऊ जैसी लंबी दूरी की यात्रा में ऊर्जा बनाए रखना अति आवश्यक है।

• यात्रा के दौरान आवश्यक दस्तावेज़ (लाइसेंस, वाहन के कागजात) और पर्याप्त नकद या डिजिटल भुगतान के साधन साथ रखें। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान की सुविधा कम हो सकती है।

• यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से संवाद स्थापित करें और उनकी संस्कृति को समझें। इससे आपकी यात्रा का अनुभव और भी समृद्ध होगा।

• थकावट महसूस होने पर रुकें और आराम करें। यह सुनिश्चित करें कि आप पूरी तरह से तरोताजा महसूस करें क्योंकि लंबी दूरी तय करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से ताजगी रहना बहुत जरूरी है।

• अगर आप भी पुणे से लखनऊ जाते समय इंदौर में रुके हैं और ओंकारेश्वर जाकर वापस आना है तो आप जल्द से जल्द वापस लौटने का प्रयास करें और 25 किमी जंगल में रात को ड्राइव करने से बचें।

अन्य:

मेरी अब तक की सोलो बाइक ट्रिप पुणे से लखनऊ ही है, हालांकि मैंने कई और यात्राएं की हैं। इनमें से एक पुणे से मुरुदेश्वर की यात्रा भी है, जो मेरे यात्रा अनुभवों का एक और खास हिस्सा है।

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